प्रोक्ति विश्लेषण
किसी लिखित, मौखिक या सांकेतिक भाषा के प्रयोग के विश्लेषण के विभिन्न तरीकों को प्रोक्ति विश्लेषण (Discourse analysis (DA) या discourse studies) कहते हैं। किसी बात को कहने के लिए प्रयुक्त वाक्यों का उस समुच्चय को प्रोक्ति कहते हैं जिसमें एकाधिक वाक्य आपस में सुसम्बद्ध होकर अर्थ और संरचना की दृष्टि में एक इकाई बन गए है।
सभी वैयाकरण प्रायः इस बात से सहमत रहे हैं कि वाक्य ही भाषा की आधारभूत ईकाई होती है। वाक्य से मन्तव्य पूरा हो जाता है। अपने आप में पूर्ण और स्वतंत्र होने के कारण वाक्य भाषिक विश्लेष्ण का आधार बन जाता है। तथापि विचारों के आदान-प्रदान के लिए वाक्य पर्याप्त नहीं होते। पूर्ण सम्प्रेषण के लिए वाक्य की सीमा को पार करना पड़ता है तथा प्रकरण और सन्दर्भ सहित संप्रेषण करने के लिए सुसम्बद्ध वाक्यों का उपयोग करना पड़ता है। एक दूसरे से जुड़े हुए सतत वाक्यों का समूह प्रोक्ति है। [1]
समाजभाषाविज्ञान के विकास के कारण इस ओर लोगों का ध्यान गया है। अर्थ और संरचना आदि सभी दृष्टियों से विचार करने पर प्रोक्ति ही भाषा की मूलभूत सहज इकाई ठहरती है और क्योंकि समाज में विचार विनिमय के लिए उसी (प्रोक्ति) का प्रयोग किया जाता है तथा वाक्य उसी का विश्लेषण करने पर प्राप्त होते हैं अतः वाक्य मूलतः भाषा की सहज इकाई नहीं हो सकते। प्रोक्ति भाषाविज्ञान में एककालिक, कालक्रमिक, तुलनात्मक, व्यतिरेकी तथा सैद्धान्तिक रूप में अध्ययन करते हैं।
पहले भाषा की मूलभूत सहज इकाई वाक्य मानी जाती थी। इसीलिए अब तक विश्व में प्राचीन काल हो या आधुनिक काल, भाषा पर जो भी काम हुआ है उसका आधार वाक्य है। इधर समाजभाषाविज्ञान के परिप्रेक्ष्य में वाक्य के भाषा की मूलभूत सहज इकाई होने की बात पर प्रश्नवाचक चिह्न लगा तथा भाषा की मूलभूत इकाई ऐसे 'वाक्यसमूह' को मानने लगे जिसके सभी वाक्य सुसम्बद्ध हों तथा जो मिलकर किसी बात को कहने में समर्थ हों। ऐसे वाक्य समूह को ही प्रोक्ति (Discourse) कहते हैं।
इस तरह तर्कपूर्ण क्रमयुक्त और आपस में आंतरिक रूप से सुसंबद्ध एकाधिक वाक्यों की ऐसी व्यवस्थित इकाई को प्रोक्ति कहते हैं, जो संदर्भ-विशेष में अर्थद्योतन की दृष्टि से पूर्ण हों। प्रोक्तिविज्ञान में विचारणीय विषय ये हैं-
- 'भाषा विशेष में वाक्यों को आपस में कैसे जोड़ा जाता है,
- 'संरचना, संबद्ध व्यक्ति, कथन, कथनप्रकृति, संसक्ति तथा शैली आदि की दृष्टि से प्रोक्ति के कितने प्रकार होते हैं
- 'किसी भाषा में प्रोक्ति-संरचना में किन-किन बातों का ध्यान रखा जाना चाहिए'
- 'प्रोक्ति-विषयक अशुद्धियाँ कौन-कौन-सी होती हैं'
प्रोक्ति पर हैरिस की एक पुस्तक बहुत पहले आई थी , डिस्कोर्स एनालिसिस (Discourse Analysis) कितु वह कुछ अलग प्रकार की थी। हैलिडे ने अपनी कई पुस्तकों में प्रोक्ति के विभिन्न पक्षों पर लिखा है। वैडाइक (Van Dijk) तथा हसन ने भी इस पर काम किया है। बीटी तथा हॉपर ने भी इस पर लिखा है। हिंदी में रवीन्द्रनाथ श्रीवास्तव ने श्रीवास्तव, मिश्र, तिवारी द्वारा संपादित पुस्तक 'हिंदी का शैक्षिक व्याकरण' में तथा भोलानाथ तिवारी ने अपने 'भाषाविज्ञान' में अलग अध्याय में इस पर विचार किया है।
सन्दर्भ
[संपादित करें]बाहरी कड़ियाँ
[संपादित करें]- Discourse Analysis of Sanskrit texts
- प्रोक्तीय दृष्टि से निराला और पंत के काव्य का तुलनात्मक अध्ययन[मृत कड़ियाँ]
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